राष्ट्र को सर्वोपरी रख भारत को आत्मनिर्भर बनाने को संकल्पित हैं नरेंद्र मोदी
लेखन एवं संकलन : मनीष सोनी देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक चलने वाले सेवा पखवाड़ा दिवस पर विविध आयोजनों को सेवा संकल्प समर्पण की भावना से मनाने के प्रयास हेतु कार्यकर्ता पदाधिकारी से आग्रह किया है के जीवन राजनीतिक परिचय से आमजन को रूबरू कराया’ भारतीय आजादी के बाद 2014 के पहले तक भारत देश के 13 प्रधानमंत्री रह चुके इतने वर्षों में और इतने हाथों के नेतृत्व के बाद भी भारत समूचे विश्व में वह मुकाम हासिल नहीं कर पाया जिसका वह हकदार था 2014 में जब 14वें प्रधानमंत्री के रूप में माननीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने शपथ ली और देश को पहले दिन से ही आत्मनिर्भर और प्रगति पद पर चलने का प्रयास शुरू कर दिया और वह आज 11 वर्षों के कम समय में ही भारत को विश्व पटल पर एक नई ताकत के रूप में पहचान दिलाने में सफल हुए यह मोदी की दूरगामी सोच का ही परिणाम है कि भारत आज जिस मुकाम पर है वह उसको एक पड़ाव ही मानते हैं उन्हें अभी भारत देश के लिए और बहुत कुछ भी करना बाकी है भारतीय इतिहास की यह पहले प्रधानमंत्री हैं जिनके ऊपर किसी भी प्रकार का दबाव काम नहीं करता और वह धर्म निष्ठा के साथ अपने हर एक भारतीय उत्थान के कार्यों को सफलतापूर्वक अंजाम देते जा रहे हैं आत्म निर्भरता की ओर निरंतर अग्रसर हमारा भारत भारत के सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा सतत प्रयास किया जा रहे हैं कि भारत और उसका हर एक व्यक्ति आत्मनिर्भर बने और इसकी और हुआ है शीघ्रता से आगे बढ़ रहे कोरोना कल हो या आज का समय कोई भी आपदा आई हो प्रधानमंत्री द्वारा आत्मनिर्ब निर्भरता की अपील आम जनता से की और इसमें वह सफलता पाते हुए निरंतर दिख रहे हैं कोरोना कल इस सदी का सबसे विकेट कल था जहां भारत ने अपने आत्मनिर्भर होने की नींव रखी और वह नीव आज मजबूत होती दिखाई दे रही है भारत आज हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर होता दिखाई दे रहा है किसी भी प्रकार का उत्पादन हो उसमें भारत लगातार आगे बढ़ रहा है और यही वजह है कि आज भारत समूचे विश्व की अर्थव्यवस्थाओं में उच्च स्थान में शामिल है और यह तब तब जाकर ही हो पा रहा है जब देश की बागडोर एक संकल्पित और दूरगामी सोच को रखने वाले के हाथ में है भारतीय प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र से आम जनता को होरहा सीधा लाभ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जितने भी योजनाओं को अब तक लागू किया गया है उसमें सबसे कारगर योजना भारतीय प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र जो समुचित देश में प्रधानमंत्री की दृढ़ निश्चयता के साथ लगातार खुलवाए जा रहे हैं जिन जगहों पर जन औषधि के केंद्र खुल चुके हैं उन क्षेत्रों के लोगों को निरंतर इसका लाभ मिल रहा है क्योंकि वर्तमान समय में अस्पताल व दवाइयां का खर्च बहुत बड़ा है और इस क्षेत्र में जन औषधि केंद्र लोगो के दवाइयां का खर्च कम करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं और इससे लोगों को स्वास्थ्य लाभ भी कम पैसों में उपलब्ध हो रहा है भारतवर्ष के इतिहास की यह पहली योजना है जहां जनता को बगैर किसी बाबू गिरी के सीधा लाभ मिल रहा है और यही कारण है कि जन औषधि की मांग भी निरंतर बढ़ती जा रही है अन्यथा भारत देश में आम जनता के भले के लिए अनेक योजनाएं आती हैं और वह बाबू गिरी के चक्कर में आम जनता तक पहुंचने में बहुत अधिक कठिनाई होती है भारतीय प्रधानमंत्री जन औषधि केदो ने इस मिथक को भी तोड़ा है की आम जनता को बगैर किसी लाग लपेट के प्रधानमंत्री की योजना का सीधा लाभ हो रहा है और उसे किसी भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ रहा हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री जी का यह दूरगामी सोच का परिणाम है और जो योजनाएं अब तक उन्होंने आम गरीब जानते के लिए लागू की हैं उनका लाभ लगातार उन्हीं लोगों को मिल रहा है जिन्हें मिलना चाहिए ऐसे यशस्वी व्यक्ति का भारत का प्रधान होना हम सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है बचपन – साधारण परिवार, सीमित साधन नरेन्द्र मोदी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। उनके पिता रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, लेकिन माता‑पिता ने उन्हें ईमानदारी और परिश्रम की शिक्षा दी।बचपन में उन्होंने स्कूल के बाद चाय की दुकान पर हाथ बंटाया। यहीं से उन्हें मेहनत का मूल्य समझ आया। कई बार पैसे की कमी से पढ़ाई में कठिनाई आई, फिर भी उन्होंने शिक्षा जारी रखी और आत्मनिर्भर बनने का संकल्प लिया। आध्यात्मिक झुकाव और संघ से जुड़ाव युवावस्था में उनका मन राष्ट्र सेवा और आत्मिक साधना की ओर आकर्षित हुआ। वे कुछ समय आश्रमों में भी रहे।इसके बाद वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े। संघ में उन्होंने अनुशासन, संगठन, नेतृत्व और राष्ट्रहित की भावना को गहराई से अपनाया।संघ के कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने गाँव‑गाँव जाकर लोगों से संपर्क साधा, सामाजिक कार्य किए और नेतृत्व की क्षमता विकसित की।शिक्षा और आत्मविकास उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई की। शिक्षा के साथ-साथ वे लगातार समाज सेवा में लगे रहे।वक्तृत्व, संगठन निर्माण और जनसंपर्क में उनकी क्षमता धीरे-धीरे बढ़ती गई। राजनीतिक यात्रा की शुरुआत 1980 के दशक में वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़े। पार्टी संगठन में कार्य करते हुए उन्होंने रणनीति, चुनाव प्रबंधन और जमीनी संपर्क पर काम किया। वे गुजरात में पार्टी को मजबूत बनाने के लिए लगातार काम करते रहे। विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए उन्होंने अपनी पहचान बनाई।1990 के दशक में वे पार्टी के महासचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर पहुँचे और चुनावों में सफलता दिलाने में योगदान दिया। कठिनाइयाँ और आलोचनाएँ राजनीति में आने के बाद उन्हें कई बार विरोध का सामना करना पड़ा। 2002 में गुजरात में हुए दंगों के समय उनकी छवि पर सवाल उठे। लेकिन उन्होंने जिम्मेदारी स्वीकार की और प्रशासनिक सुधार, विकास योजनाओं तथा जनहित के कामों पर ध्यान केंद्रित किया। कई बार आर्थिक संकट, विरोध और मीडिया की आलोचनाओं का सामना करते हुए भी उन्होंने हार नहीं मानी। वे लगातार जनहित के मुद्दों पर काम करते