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ऐक्टर बनना है? अनाड़ी नहीं, प्रोफ़ेशनल ऐक्टर बनें !

अगर आप कभी-कभी इस बहस में पड़ जाते हैं कि ऐक्टर जन्मजात या पैदाइशी होते हैं या नहीं? और फिर भी असमंजस बाक़ी रह गया हो, तो ये पोस्ट ज़रूर पढ़ें।यहाँ मैं इस संदर्भ में कुछ विचार रख रहा हूँ। मेरा मानना है कि दुनिया का हर आदमी ऐक्टर है। लोग अपनी ज़िंदगी (Real Life) में भी बहुत ऐक्टिंग करते हैं। मतलब अपने मूड और सच्ची भावना को सफ़ाई से छुपाकर, ज़रूरत के अनुरूप नकली भाव पेश करते हैं। यह ऐक्टिंग है। ऐसे भी कई लोग होते हैं, जिनके अंदाज़, हावभाव, बनना सँवरना देखकर लोग कहते हैं कि “तुम फ़िल्मों में ट्राई क्यों नहीं करते?” लेकिन ज़्यादातर लोग कैमरे के सामने आते ही नर्वस हो जाते हैं, घबरा जाते हैं, शर्मा जाते हैं, सहज नहीं रह पाते, आवाज़ ही साथ नहीं दे पाती, स्पष्ट बोल नहीं पाते या बहुत ही सतही तौर पर ऐक्टिंग कर पाते हैं। इसीलिए ऐसे लोग प्रोफ़ेशनल ऐक्टर नहीं बन पाते। जबकि अभिनय की कुछ आधारभूत बातें और तकनीक सीख लेने के बाद वो अच्छी ऐक्टिंग कर सकते हैं। ये फ़र्क़ है। आप ख़ुद सोचिए…जन्म से कोई भी, कुछ बनकर पैदा नहीं होता। एक किस्सा है। एक गाँव में किसी सर्वे के दौरान ग्रामीणों से जब पूछा गया कि “क्या गाँव में कोई ‘बड़ा आदमी’ पैदा हुआ है?” तो ग्रामीण बोले कि “नहीं, यहाँ बड़ा आदमी तो कभी पैदा नहीं हुआ, सब छोटे बच्चे ही पैदा होते हैं : जन्म से न कोई डॉक्टर पैदा होता है, न इंजीनियर, न नेता, न लुटेरा, न हेयर ड्रेसर, न हलवाई और न ही ऐक्टर। ऐक्टर बनना, उस व्यक्ति की रुचि, दृढ़ इच्छा शक्ति, जुनून, पुरुषार्थ और अवसरों को भुनाने की क्षमता पर निर्भर करता है, सिर्फ़ जन्म लेने पर नहीं। दरअसल ऐक्टिंग को लोग बहुत हल्के में लेते हैं।जैसे अगर किसी ने डॉक्टर बनने का सोचा,तो वो उसके लिए मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करेगाऔर चयन के बाद कुछ साल डाक्टरी सीखने में लगाएगा।कोई इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, सिनेमेटोग्राफ़र, फ़ैशन डिज़ाइनर का करियर चुनता है, तो सबसे पहले यही प्लानिंग करेगा कि सीखने के लिए क्या करना है।यहाँ तक कि हुनरवाले काम जैसे कुकिंग, कटिंग, बढ़ईगिरी, टेलरिंग, मैकेनिक, खेती-किसानी, दुकानदारी आदी के लिए भी सीखने पर सबको ज़ोर देना ही पड़ेगा। लेकिन अफ़सोस यही है कि ऐक्टर बनने का “सोचते ही” सब ऐक्टर बन जाते हैं। जी, सिर्फ़ “सोचते ही”….. क्योंकि उन्होंने “ऐक्टर बनने का सोच लिया है” इसलिए वो ऐक्टर हैं और उन्हें सीधा किसी फ़िल्म या सीरियल में काम चाहिए। ये जन्मजात ऐक्टर पैदा होने वाली सोच है। लेकिन सच कहूँ, ऐसे ही लोग सबसे ज़्यादा पछताते भी हैं, क्योंकि ऐसे लोग बस यही गुमान रखते हैं कि किसी डायरेक्टर की नज़र उन पर पड़ेगी और उन्हें हीरो/हीरोइन बना देगा। ये सीधा-सीधा “मुंगेरी लाल का हसीन सपना” है। ज़रा सोचिए… आपके पास जन्मजात पैर हैं और दौड़ना आपकी जन्मजात क्षमता है… फिर क्यों आप दौड़ने में मेडल नहीं जीतते? ज़रा सोचिए… आपको नदी-तालाब में तैरना आता है… फिर क्यों आप ओलम्पिक खिलाड़ी (तैराक) नहीं बन पाए? ज़रा सोचिए…. आपके पास दो-दो हाथ जन्म से हैं… फिर क्यों आप मुक्केबाज़ नहीं बने? ज़रा सोचिए….. आपको भगवान ने जन्म से गला दिया है… फिर क्यों आप गायक नहीं बने? आनुवांशिक (Genetic) गुण भी तभी काम आ सकते हैं जब बाक़ायदा तालीम ली जाए, वरना वो नष्ट हो जाता है। इसीलिए सारे ऐक्टर्स के बच्चे भी ऐक्टर नहीं बन पाते। कुछ भी बनने के लिए आपको उस पेशे या कला से सम्बंधित बारीकियाँ और तकनीक सीखनी ही होगी, तब जाकर आप सँवर पाएंगे और काम करने लायक हो पाएंगे। हालाँकि फ़िल्म या सीरियल डायरेक्टर कई बार अनाड़ी लोगों से भी ऐक्टिंग का काम करा लेते हैं। लेकिन इसका मतलब नहीं कि वे लोग ऐक्टर बन गए। उनको पता नहीं होता कि उनसे कोई बात कैसे और उसी अंदाज़ में क्यों कहलवाई गई। आजकल शूटिंग का ख़र्च बहुत बढ़ गया है।आपका एक भी रीटेक फ़िल्म की लागत बढ़ा देता है। इसलिए शूटिंग के दौरान कोई भी आपकोग़लती कर-कर के सीखने का मौक़ा नहीं दे सकता।वहाँ प्रोफ़ेशनल एक्टर चाहिए, जो डायरेक्टर की मरज़ी के मुताबिक तुरंत काम कर दें। इसीलिए अब ऐक्टर नहीं, बल्कि ‘प्रोफ़ेशनल ऐक्टर्स’ की ज़रूरत है।इसके लिए आपको अपनी भाषा और अपनी आवाज़ पर काम करना होगा।अपने शरीर को चुस्त-फ़ुर्त और लचीला (Flexible) बनाने पर काम करना होगा। कैरेक्टर की आवश्यकता के अनुरूप भावनाओं (Emotions) को सच्चाई से पेश करना सीखना होगा।कैमरे के लिए ऐक्टिंग कैसे की जाती है, ये सीखना होगा।किस तरह हर इमोशन को आसानी से पेश किया जा सके,किस तरह उस कैरेक्टर में उतरकर उसके साथ एकाकार हुआ जा सके,किस तरह लम्बे-चौड़े स्क्रिप्ट को याद किया जाएं,किस तरह शूटिंग के दौरान ब्लॉकिंगऔर साथी कलाकारों का ध्यान रखना है…. आदि बातें सीधे सेट पर अब कोई नहीं सिखाएगा। डायरेक्टर सिर्फ़ डायरेक्टर होते हैं, वे ट्रेनर नहीं होते।वो आपको सेट पर ट्रेनिंग नहीं देने बैठेंगे। वास्तविकता ये है कि अनाड़ी लोग उन डायरेक्टर्स तक पहुँच भी नहीं पाते हैं। प्रोफ़ेशनल ऐक्टर बनना है तो आपको पहले से ही तैयारी करनी होगी। आजकल तो कई जगह सेट भी नहीं होते, सबकुछ क्रोमा के सामने शूट होता है। ऐसे में अनाड़ी ऐक्टर कैसे इस नई तकनीक के साथ तालमेल बैठा सकता है? ये सब ट्रेनिंग के दौरान सीखा जा सकता है। जो भी जुनून से सीखेगा, अमल करेगा, वही ऐक्टर बनेगा। इदरीस खत्रीअभिनय प्रशिक्षकएक्टिंग मेंटर

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ताइक्वांडो बेल्ट प्रमोशन टेस्ट सफलतापूर्वक संपन्न, खिलाड़ियों ने दिखाई अनुशासन और ऊर्जा

✒️ आशीष नेमा कटनी। स्थानीय ताइक्वांडो प्रशिक्षण केंद्र में बेल्ट प्रमोशन टेस्ट का सफल आयोजन किया गया। इस परीक्षा में बच्चों ने उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए अपनी मेहनत, अनुशासन और लगन का परिचय दिया।टेस्ट का संचालन मास्टर मांडवी पाण्डेय (4th डैन ब्लैक बेल्ट, हापकिडो प्रशिक्षक, सीएसडीएफ की मध्यप्रदेश प्रतिनिधि एवं अधिवक्ता, जिला न्यायालय कटनी) द्वारा किया गया।इस अवसर पर छात्रों ने विभिन्न तकनीकी गतिविधियाँ जैसे—बोर्ड ब्रेकिंग, किकिंग, पंचिंग, स्टेप्स और पूमसे में अपनी शानदार क्षमता का प्रदर्शन किया।परीक्षा में सफल विद्यार्थियों में —आकर्षित (ग्रीन बेल्ट), वेदिका बिलोहाँ (ग्रीन बेल्ट), रेविका बिलोहाँ (ग्रीन बेल्ट), आयुष (हाई येलो बेल्ट), अनन्य सिंह (हाई येलो बेल्ट), अब्याक्त, सिद्धांत एवं शिवेंद्र राजपूत (येलो बेल्ट) शामिल रहे।मास्टर मांडवी पाण्डेय ने बच्चों को बधाई देते हुए कहा कि,“ताइक्वांडो केवल आत्मरक्षा नहीं, बल्कि आत्मअनुशासन और आत्मविश्वास की कला है।यह देखकर खुशी होती है कि हमारे विद्यार्थी न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी दिन-प्रतिदिन मज़बूत हो रहे हैं।”कार्यक्रम में सभी विद्यार्थियों के अभिभावकों ने भी उपस्थिति दर्ज कराते हुए बच्चों का उत्साहवर्धन किया।

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“मेहनत और निष्ठा ने दिलाई पदोन्नति” काम या उपलब्धियों से नहीं, बल्कि सदस्यों से पहचानी जाती है कंपनी

News By : आशीष नेमा इंदौर: एक उत्कृष्ट कंपनी की पहचान सिर्फ उसके काम या उपलब्धियों से नहीं, बल्कि तब होती है, जब वह अपने साथ-साथ अपने परिवार के सदस्यों को लेकर आगे बढ़ती है। उत्तर भारत की अग्रणी पब्लिक रिलेशन्स कंपनी, पीआर 24×7 इसी विश्वास के साथ विकास कर रही है कि कोई संगठन तभी मजबूत बनता है, जब वह अपने एम्प्लॉयीज़ को उनकी पूरी क्षमता दिखाने और नए आयाम हासिल करने के भरपूर अवसर दे। इसे ध्यान में रखते हुए, कंपनी ने अपने 8 एम्प्लॉयीज़ का प्रमोशन कर उन्हें नई जिम्मेदारियाँ सौंपी, जो न सिर्फ कंपनी के 2.0 सफर को गति प्रदान करेगा, बल्कि एम्प्लॉयीज़ के व्यक्तिगत और पेशेवर विकास को भी बढ़ावा देगा। सभी के नेतृत्व में कंपनी क्लाइंट्स को उत्कृष्ट अनुभव और संतुष्टि देने की नई मिसाल कायम करेगी। इस अवसर पर पीआर 24×7 के फाउंडर, अतुल मलिकराम ने कहा, “एक कंपनी की सफलता में उसमें कार्यरत एम्प्लॉयीज़ के वर्षों के कार्य अनुभव जुड़कर कई गुना विकास में योगदान देते हैं। मैं हमेशा से ही यह मानता आया हूँ कि आज कंपनी जिस मुकाम पर है, वह सच्चिदानंद श्री साईं बाबा और सभी सदस्यों की कड़ी मेहनत, सर्वश्रेष्ठ देने के प्रति जुनून और निष्ठा का परिणाम है। ऐसे में, मेरा कर्तव्य है कि मैं उन पिलर्स को अपने साथ लेकर चलूँ, जिन्होंने इसे सिर्फ कंपनी से परे एक मजबूत परिवार बनाया। आज का दिन मेरे लिए बहुत ही खास है। जब मैंने इस कंपनी की नींव रखी थी, उस समय मेरा सिर्फ एक ही सपना था- ऐसा परिवार बनाना, जहाँ हर सदस्य काम के साथ सीखना जारी रखे, आगे बढ़े और अपनी पहचान बनाए। आज जिन साथियों को प्रमोशन मिला है, वह उनकी मेहनत का नतीजा ही नहीं, बल्कि पूरी टीम की एकजुटता और सहयोग का प्रमाण है। प्रमोशन पद नहीं, बल्कि भरोसे और जिम्मेदारी का नाम है, जिसके साथ हमें भारत से आगे बढ़कर अब पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाना है। सभी को धन्यवाद् और अपार शुभकामनाएँ।” मीना बिसेन 11 वर्षों से अकाउंट और फाइनेंस में अपनी दूरदर्शिता और सूझ-बूझ से टीम का मार्गदर्शन करती आ रही हैं। अब चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर के रूप में उनका नेतृत्व वित्तीय स्थिरता और रणनीति को नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा। 17 वर्षों के अनुभव के साथ उज्जैन सिंह चौहान मीडिया मॉनिटरिंग में अपनी तेज नजर और मेहनत के लिए जाने जाते हैं, अब सीओओ, मीडिया मॉनिटरिंग का पद संभालते हुए, कंपनी के दृष्टिकोण को नए आयाम प्रदान करेंगे। संसृति मिश्रा की 12 वर्षों की क्लाइंट-फोकस्ड सोच के चलते उन्हें सीओओ, क्लाइंट्स कोऑर्डिनेशन के पद से नवाज़ा गया है। विकास राजोरा, पब्लिक अफेयर्स में अपने नेटवर्क और समझदारी के लिए 14 वर्षों के अनुभव के साथ, अब सीओओ, पब्लिक अफेयर्स बनकर एडवोकेसी और आउटरीच में नई ऊर्जा लाएँगे। परिणीता नागरकर खेले, 15 वर्षों के अपने क्लाइंट रिलेशनशिप और मार्केटिंग स्किल्स के साथ, सीओओ, क्लाइंट्स कोऑर्डिनेशन का पदभार संभालकर टीम के अनुभव और क्लाइंट सेटिस्फैक्शन को नई दिशा देंगी। कंपनी में अपने 7 वर्षों के अनुभव के साथ रोहित सिंह चंदेल असिस्टेंट सीईओ और इकबाल पटेल अब असिस्टेंट सीओओ का पदभार सँभालते हुए कंपनी की रणनीतियों और विकास में नए विचार और दृष्टिकोण जोड़ेंगे। अब तक असिस्टेंट मैनेजर के रूप में कार्यरत उर्वशी वर्मा अपने चार वर्षों के अनुभव के साथ अब मैनेजर पीआर के रूप में अपनी अलग सोच और मेहनत से कंपनी में नई ऊर्जा और उमंग लाएँगी। कंपनी का यह कदम उसके और उसके साथियों के बीच विश्वास और अपनेपन को और भी मजबूत करता है और यह दिखाता है कि एक सशक्त टीम ही किसी कंपनी की असली ताकत होती है। यह कंपनी का वह नजरिया है, जो हर बार किसी भी अवसर को साधारण नहीं रहने देता और खुद के साथ टीम को हमेशा नई ऊँचाइयों तक ले जाता है। हर बार नए प्रयोगों और चुनौतियों को अपनाकर पीआर 24×7 एम्प्लॉयीज़ की अनोखी सोच और उनके जज़्बे को सलाम करता है और हम इस कंपनी के जज़्बे को सलाम करते हैं। पीआर 24×7 के बारे में पीआर 24×7 एक कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन कंपनी है, जो भारत की सर्वश्रेष्ठ पीआर कंपनियों में से एक है। ब्रांड के पास 25 वर्षों का व्यापक अनुभव है, जिसने इसे 18 से अधिक राज्यों और 68 से अधिक शहरों में अपनी सेवाओं का विस्तार करने में सक्षम बनाया है। इसकी 75 से अधिक सदस्यों की मजबूत और समर्पित टीम ने हर चुनौती का सामना करते हुए उत्कृष्टता की ऊँचाइयों को छुआ है। आज, कंपनी के पास 200 से अधिक क्लाइंट्स और 75 से अधिक लोगों की एक मजबूत टीम है। हमारे ग्राहक हमें कई कारणों से पसंद करते हैं, जिनमें 24×7 उपलब्धता, रीजनल मीडिया की समझ, नेटवर्क और मीडिया संबंध, क्राइसिस कम्युनिकेशन में विशेषज्ञता, उत्कृष्ट मीडिया मॉनिटरिंग क्षमताएँ, टीम की संस्कृति और स्थिरता और गुणवत्तापूर्ण सेवाओं के साथ दीर्घकालिक ग्राहक संबंध शामिल हैं।

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मध्य प्रदेश में अब केवल पंजीकृत फार्मासिस्ट ही दे सकेंगे दवाएं, नियम उल्लंघन पर होगी सख्त कार्रवाई

भोपाल: मध्य प्रदेश फार्मेसी काउंसिल, भोपाल ने राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने और नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है। नए आदेश के अनुसार, अब प्रदेश के सभी अस्पतालों, फार्मेसियों और मेडिकल स्टोर पर दवाइयों का वितरण, बिक्री या डिस्पेंसिंग केवल एक पंजीकृत फार्मासिस्ट की भौतिक उपस्थिति में ही संभव हो सकेगा। काउंसिल द्वारा जारी की गई आधिकारिक सूचना में स्पष्ट किया गया है कि यह कड़ा कदम फार्मेसी अधिनियम 1948 की धारा 42 और हाल ही में लागू हुए जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम 2023 के प्रावधानों के तहत उठाया गया है। इन अधिनियमों का उद्देश्य फार्मेसी के पेशे को विनियमित करना और यह सुनिश्चित करना है कि मरीजों तक दवाएं सुरक्षित और पेशेवर तरीके से पहुंचें। इस निर्देश का उल्लंघन करने वाले संस्थानों और व्यक्तियों पर कठोर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। यदि कोई भी मेडिकल स्टोर, अस्पताल या फार्मेसी बिना पंजीकृत फार्मासिस्ट के दवाएं वितरित या बेचते हुए पाया जाता है, तो संबंधित व्यक्ति और संस्थान के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इसके अतिरिक्त, दोषी पाए जाने पर संबंधित फार्मासिस्ट का पंजीकरण स्थायी रूप से निरस्त या कुछ समय के लिए निलंबित किया जा सकता है। काउंसिल के इस फैसले का मुख्य उद्देश्य प्रदेश में बिना विशेषज्ञता के दवा वितरण पर रोक लगाना है, जिससे दवाओं के गलत उपयोग और उससे होने वाले दुष्प्रभावों के खतरों को कम किया जा सके। यह सुनिश्चित करेगा कि हर मरीज को दवा की सही जानकारी, उसकी खुराक और उपयोग करने का तरीका एक योग्य फार्मासिस्ट द्वारा ही बताया जाए। सभी फार्मेसी संचालकों और स्वास्थ्य संस्थानों को इस निर्देश का तत्काल प्रभाव से पालन करने के लिए कहा गया है। काउंसिल ने यह भी संकेत दिया है कि इन नियमों के अनुपालन की जांच के लिए औचक निरीक्षण भी किए जाएंगे।

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सिरप कांड: 23 बच्चों की मौत के मामले में दवा कंपनी का मालिक गिरफ्तार

चेन्नई/छिंदवाड़ा: मध्य प्रदेश में जहरीले कफ सिरप से 23 बच्चों की दर्दनाक मौत के मामले में बड़ी कार्रवाई हुई है। मध्य प्रदेश पुलिस ने तमिलनाडु के चेन्नई से दवा निर्माता कंपनी श्रीसन फार्मास्युटिकल्स के मालिक रंगनाथन गोविंदन को हिरासत में ले लिया है। रंगनाथन पर गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है और उनकी गिरफ्तारी पर 20,000 रुपये का इनाम भी घोषित था। यह मामला तब सामने आया जब मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और बैतूल जिलों में खांसी-जुकाम और बुखार से पीड़ित बच्चों को ‘कोल्ड्रिफ’ नामक कफ सिरप दिया गया, जिसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। जांच में पता चला कि बच्चों की किडनी फेल हो रही थी। अब तक इस जहरीले सिरप के सेवन से 23 मासूमों की जान जा चुकी है। कई अन्य बच्चों का अभी भी नागपुर के अस्पतालों में इलाज चल रहा है, जिनमें से कुछ की हालत गंभीर बनी हुई है। जहरीले रसायन डाईएथिलीन ग्लाइकॉल की पुष्टि सरकारी प्रयोगशाला में हुई जांच में सिरप के सैंपल में जानलेवा औद्योगिक रसायन ‘डाईएथिलीन ग्लाइकॉल’ (Diethylene Glycol – DEG) की भारी मात्रा पाई गई। यह रसायन इंसानों के लिए बेहद जहरीला होता है और इसके सेवन से किडनी फेल हो सकती है, जिससे मौत हो जाती है। मुख्य आरोपी पर इनाम और SIT का गठन मामले की गंभीरता को देखते हुए मध्य प्रदेश पुलिस ने श्रीसन फार्मा के फरार मालिक रंगनाथन पर 20 हजार रुपये का इनाम घोषित किया था और उसकी तलाश के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया था। एसआईटी की टीम ने लगातार दबिश देते हुए अंततः उसे चेन्नई से पकड़ लिया। डॉक्टर पहले ही हो चुका है गिरफ्तार इस मामले में पुलिस पहले ही छिंदवाड़ा के परासिया के एक बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सोनी को गिरफ्तार कर चुकी है। आरोप है कि डॉ. सोनी ने ही कई पीड़ित बच्चों को यह जहरीला कफ सिरप लेने की सलाह दी थी। हालांकि, स्थानीय डॉक्टर संघ ने डॉ. सोनी की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए दवा निर्माता कंपनी और सरकारी तंत्र की विफलता को जिम्मेदार ठहराया है। सरकार की कार्रवाई मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ने पुष्टि की है कि मौतों का आंकड़ा 23 तक पहुंच गया है। सरकार ने मामले में लापरवाही बरतने पर छिंदवाड़ा के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) और दो ड्रग इंस्पेक्टरों सहित कई अधिकारियों पर कार्रवाई की है। राज्य सरकार ने कोल्ड्रिफ सिरप सहित श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स के सभी उत्पादों की बिक्री पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है। साथ ही, देश के कई अन्य राज्यों ने भी एहतियातन इस सिरप पर रोक लगा दी है। इस हृदयविदारक घटना ने देश में दवाओं की गुणवत्ता और नियामक प्रणाली पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। शोक संतप्त परिवार दोषियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

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राष्ट्र को सर्वोपरी रख भारत को आत्मनिर्भर बनाने को संकल्पित हैं नरेंद्र मोदी

लेखन एवं संकलन : मनीष सोनी देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक चलने वाले सेवा पखवाड़ा दिवस पर विविध आयोजनों को सेवा संकल्प समर्पण की भावना से मनाने के प्रयास हेतु कार्यकर्ता पदाधिकारी से आग्रह किया है के जीवन राजनीतिक परिचय से आमजन को रूबरू कराया’ भारतीय आजादी के बाद 2014 के पहले तक भारत देश के 13 प्रधानमंत्री रह चुके इतने वर्षों में और इतने हाथों के नेतृत्व के बाद भी भारत समूचे विश्व में वह मुकाम हासिल नहीं कर पाया जिसका वह हकदार था 2014 में जब 14वें प्रधानमंत्री के रूप में माननीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने शपथ ली और देश को पहले दिन से ही आत्मनिर्भर और प्रगति पद पर चलने का प्रयास शुरू कर दिया और वह आज 11 वर्षों के कम समय में ही भारत को विश्व पटल पर एक नई ताकत के रूप में पहचान दिलाने में सफल हुए यह मोदी की दूरगामी सोच का ही परिणाम है कि भारत आज जिस मुकाम पर है वह उसको एक पड़ाव ही मानते हैं उन्हें अभी भारत देश के लिए और बहुत कुछ भी करना बाकी है भारतीय इतिहास की यह पहले प्रधानमंत्री हैं जिनके ऊपर किसी भी प्रकार का दबाव काम नहीं करता और वह धर्म निष्ठा के साथ अपने हर एक भारतीय उत्थान के कार्यों को सफलतापूर्वक अंजाम देते जा रहे हैं आत्म निर्भरता की ओर निरंतर अग्रसर हमारा भारत भारत के सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा सतत प्रयास किया जा रहे हैं कि भारत और उसका हर एक व्यक्ति आत्मनिर्भर बने और इसकी और हुआ है शीघ्रता से आगे बढ़ रहे कोरोना कल हो या आज का समय कोई भी आपदा आई हो प्रधानमंत्री द्वारा आत्मनिर्ब निर्भरता की अपील आम जनता से की और इसमें वह सफलता पाते हुए निरंतर दिख रहे हैं कोरोना कल इस सदी का सबसे विकेट कल था जहां भारत ने अपने आत्मनिर्भर होने की नींव रखी और वह नीव आज मजबूत होती दिखाई दे रही है भारत आज हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर होता दिखाई दे रहा है किसी भी प्रकार का उत्पादन हो उसमें भारत लगातार आगे बढ़ रहा है और यही वजह है कि आज भारत समूचे विश्व की अर्थव्यवस्थाओं में उच्च स्थान में शामिल है और यह तब तब जाकर ही हो पा रहा है जब देश की बागडोर एक संकल्पित और दूरगामी सोच को रखने वाले के हाथ में है भारतीय प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र से आम जनता को होरहा सीधा लाभ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जितने भी योजनाओं को अब तक लागू किया गया है उसमें सबसे कारगर योजना भारतीय प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र जो समुचित देश में प्रधानमंत्री की दृढ़ निश्चयता के साथ लगातार खुलवाए जा रहे हैं जिन जगहों पर जन औषधि के केंद्र खुल चुके हैं उन क्षेत्रों के लोगों को निरंतर इसका लाभ मिल रहा है क्योंकि वर्तमान समय में अस्पताल व दवाइयां का खर्च बहुत बड़ा है और इस क्षेत्र में जन औषधि केंद्र लोगो के दवाइयां का खर्च कम करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं और इससे लोगों को स्वास्थ्य लाभ भी कम पैसों में उपलब्ध हो रहा है भारतवर्ष के इतिहास की यह पहली योजना है जहां जनता को बगैर किसी बाबू गिरी के सीधा लाभ मिल रहा है और यही कारण है कि जन औषधि की मांग भी निरंतर बढ़ती जा रही है अन्यथा भारत देश में आम जनता के भले के लिए अनेक योजनाएं आती हैं और वह बाबू गिरी के चक्कर में आम जनता तक पहुंचने में बहुत अधिक कठिनाई होती है भारतीय प्रधानमंत्री जन औषधि केदो ने इस मिथक को भी तोड़ा है की आम जनता को बगैर किसी लाग लपेट के प्रधानमंत्री की योजना का सीधा लाभ हो रहा है और उसे किसी भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ रहा हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री जी का यह दूरगामी सोच का परिणाम है और जो योजनाएं अब तक उन्होंने आम गरीब जानते के लिए लागू की हैं उनका लाभ लगातार उन्हीं लोगों को मिल रहा है जिन्हें मिलना चाहिए ऐसे यशस्वी व्यक्ति का भारत का प्रधान होना हम सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है बचपन – साधारण परिवार, सीमित साधन नरेन्द्र मोदी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। उनके पिता रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, लेकिन माता‑पिता ने उन्हें ईमानदारी और परिश्रम की शिक्षा दी।बचपन में उन्होंने स्कूल के बाद चाय की दुकान पर हाथ बंटाया। यहीं से उन्हें मेहनत का मूल्य समझ आया। कई बार पैसे की कमी से पढ़ाई में कठिनाई आई, फिर भी उन्होंने शिक्षा जारी रखी और आत्मनिर्भर बनने का संकल्प लिया। आध्यात्मिक झुकाव और संघ से जुड़ाव युवावस्था में उनका मन राष्ट्र सेवा और आत्मिक साधना की ओर आकर्षित हुआ। वे कुछ समय आश्रमों में भी रहे।इसके बाद वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े। संघ में उन्होंने अनुशासन, संगठन, नेतृत्व और राष्ट्रहित की भावना को गहराई से अपनाया।संघ के कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने गाँव‑गाँव जाकर लोगों से संपर्क साधा, सामाजिक कार्य किए और नेतृत्व की क्षमता विकसित की।शिक्षा और आत्मविकास उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई की। शिक्षा के साथ-साथ वे लगातार समाज सेवा में लगे रहे।वक्तृत्व, संगठन निर्माण और जनसंपर्क में उनकी क्षमता धीरे-धीरे बढ़ती गई। राजनीतिक यात्रा की शुरुआत 1980 के दशक में वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़े। पार्टी संगठन में कार्य करते हुए उन्होंने रणनीति, चुनाव प्रबंधन और जमीनी संपर्क पर काम किया। वे गुजरात में पार्टी को मजबूत बनाने के लिए लगातार काम करते रहे। विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए उन्होंने अपनी पहचान बनाई।1990 के दशक में वे पार्टी के महासचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर पहुँचे और चुनावों में सफलता दिलाने में योगदान दिया। कठिनाइयाँ और आलोचनाएँ राजनीति में आने के बाद उन्हें कई बार विरोध का सामना करना पड़ा। 2002 में गुजरात में हुए दंगों के समय उनकी छवि पर सवाल उठे। लेकिन उन्होंने जिम्मेदारी स्वीकार की और प्रशासनिक सुधार, विकास योजनाओं तथा जनहित के कामों पर ध्यान केंद्रित किया। कई बार आर्थिक संकट, विरोध और मीडिया की आलोचनाओं का सामना करते हुए भी उन्होंने हार नहीं मानी। वे लगातार जनहित के मुद्दों पर काम करते

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