- Ashish Nema – 7772017777
अगर आप कभी-कभी इस बहस में पड़ जाते हैं कि ऐक्टर जन्मजात या पैदाइशी होते हैं या नहीं? और फिर भी असमंजस बाक़ी रह गया हो, तो ये पोस्ट ज़रूर पढ़ें।
यहाँ मैं इस संदर्भ में कुछ विचार रख रहा हूँ।
मेरा मानना है कि दुनिया का हर आदमी ऐक्टर है। लोग अपनी ज़िंदगी (Real Life) में भी बहुत ऐक्टिंग करते हैं। मतलब अपने मूड और सच्ची भावना को सफ़ाई से छुपाकर, ज़रूरत के अनुरूप नकली भाव पेश करते हैं। यह ऐक्टिंग है।
ऐसे भी कई लोग होते हैं, जिनके अंदाज़, हावभाव, बनना सँवरना देखकर लोग कहते हैं कि “तुम फ़िल्मों में ट्राई क्यों नहीं करते?”
लेकिन ज़्यादातर लोग कैमरे के सामने आते ही नर्वस हो जाते हैं, घबरा जाते हैं, शर्मा जाते हैं, सहज नहीं रह पाते, आवाज़ ही साथ नहीं दे पाती, स्पष्ट बोल नहीं पाते या बहुत ही सतही तौर पर ऐक्टिंग कर पाते हैं।
इसीलिए ऐसे लोग प्रोफ़ेशनल ऐक्टर नहीं बन पाते।
जबकि अभिनय की कुछ आधारभूत बातें और तकनीक सीख लेने के बाद वो अच्छी ऐक्टिंग कर सकते हैं। ये फ़र्क़ है।
आप ख़ुद सोचिए…जन्म से कोई भी, कुछ बनकर पैदा नहीं होता।
एक किस्सा है। एक गाँव में किसी सर्वे के दौरान ग्रामीणों से जब पूछा गया कि “क्या गाँव में कोई ‘बड़ा आदमी’ पैदा हुआ है?” तो ग्रामीण बोले कि “नहीं, यहाँ बड़ा आदमी तो कभी पैदा नहीं हुआ, सब छोटे बच्चे ही पैदा होते हैं :
जन्म से न कोई डॉक्टर पैदा होता है, न इंजीनियर, न नेता, न लुटेरा, न हेयर ड्रेसर, न हलवाई और न ही ऐक्टर।
ऐक्टर बनना, उस व्यक्ति की रुचि, दृढ़ इच्छा शक्ति, जुनून, पुरुषार्थ और अवसरों को भुनाने की क्षमता पर निर्भर करता है, सिर्फ़ जन्म लेने पर नहीं।
दरअसल ऐक्टिंग को लोग बहुत हल्के में लेते हैं।
जैसे अगर किसी ने डॉक्टर बनने का सोचा,
तो वो उसके लिए मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करेगा
और चयन के बाद कुछ साल डाक्टरी सीखने में लगाएगा।
कोई इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, सिनेमेटोग्राफ़र, फ़ैशन डिज़ाइनर का करियर चुनता है, तो सबसे पहले यही प्लानिंग करेगा कि सीखने के लिए क्या करना है।
यहाँ तक कि हुनरवाले काम जैसे कुकिंग, कटिंग, बढ़ईगिरी, टेलरिंग, मैकेनिक, खेती-किसानी, दुकानदारी आदी के लिए भी सीखने पर सबको ज़ोर देना ही पड़ेगा।
लेकिन अफ़सोस यही है कि ऐक्टर बनने का “सोचते ही” सब ऐक्टर बन जाते हैं। जी, सिर्फ़ “सोचते ही”….. क्योंकि उन्होंने “ऐक्टर बनने का सोच लिया है” इसलिए वो ऐक्टर हैं और उन्हें सीधा किसी फ़िल्म या सीरियल में काम चाहिए। ये जन्मजात ऐक्टर पैदा होने वाली सोच है।
लेकिन सच कहूँ, ऐसे ही लोग सबसे ज़्यादा पछताते भी हैं, क्योंकि ऐसे लोग बस यही गुमान रखते हैं कि किसी डायरेक्टर की नज़र उन पर पड़ेगी और उन्हें हीरो/हीरोइन बना देगा।
ये सीधा-सीधा “मुंगेरी लाल का हसीन सपना” है।
ज़रा सोचिए… आपके पास जन्मजात पैर हैं और दौड़ना आपकी जन्मजात क्षमता है… फिर क्यों आप दौड़ने में मेडल नहीं जीतते?
ज़रा सोचिए… आपको नदी-तालाब में तैरना आता है… फिर क्यों आप ओलम्पिक खिलाड़ी (तैराक) नहीं बन पाए?
ज़रा सोचिए…. आपके पास दो-दो हाथ जन्म से हैं… फिर क्यों आप मुक्केबाज़ नहीं बने?
ज़रा सोचिए….. आपको भगवान ने जन्म से गला दिया है… फिर क्यों आप गायक नहीं बने?
आनुवांशिक (Genetic) गुण भी तभी काम आ सकते हैं जब बाक़ायदा तालीम ली जाए, वरना वो नष्ट हो जाता है। इसीलिए सारे ऐक्टर्स के बच्चे भी ऐक्टर नहीं बन पाते।
कुछ भी बनने के लिए आपको उस पेशे या कला से सम्बंधित बारीकियाँ और तकनीक सीखनी ही होगी, तब जाकर आप सँवर पाएंगे और काम करने लायक हो पाएंगे।
हालाँकि फ़िल्म या सीरियल डायरेक्टर कई बार अनाड़ी लोगों से भी ऐक्टिंग का काम करा लेते हैं। लेकिन इसका मतलब नहीं कि वे लोग ऐक्टर बन गए। उनको पता नहीं होता कि उनसे कोई बात कैसे और उसी अंदाज़ में क्यों कहलवाई गई।
आजकल शूटिंग का ख़र्च बहुत बढ़ गया है।
आपका एक भी रीटेक फ़िल्म की लागत बढ़ा देता है। इसलिए शूटिंग के दौरान कोई भी आपको
ग़लती कर-कर के सीखने का मौक़ा नहीं दे सकता।
वहाँ प्रोफ़ेशनल एक्टर चाहिए, जो डायरेक्टर की मरज़ी के मुताबिक तुरंत काम कर दें।
इसीलिए अब ऐक्टर नहीं, बल्कि ‘प्रोफ़ेशनल ऐक्टर्स’ की ज़रूरत है।
इसके लिए आपको अपनी भाषा और अपनी आवाज़ पर काम करना होगा।
अपने शरीर को चुस्त-फ़ुर्त और लचीला (Flexible) बनाने पर काम करना होगा। कैरेक्टर की आवश्यकता के अनुरूप भावनाओं (Emotions) को सच्चाई से पेश करना सीखना होगा।
कैमरे के लिए ऐक्टिंग कैसे की जाती है, ये सीखना होगा।
किस तरह हर इमोशन को आसानी से पेश किया जा सके,
किस तरह उस कैरेक्टर में उतरकर उसके साथ एकाकार हुआ जा सके,
किस तरह लम्बे-चौड़े स्क्रिप्ट को याद किया जाएं,
किस तरह शूटिंग के दौरान ब्लॉकिंग
और साथी कलाकारों का ध्यान रखना है…. आदि बातें सीधे सेट पर अब कोई नहीं सिखाएगा।
डायरेक्टर सिर्फ़ डायरेक्टर होते हैं, वे ट्रेनर नहीं होते।
वो आपको सेट पर ट्रेनिंग नहीं देने बैठेंगे। वास्तविकता ये है कि अनाड़ी लोग उन डायरेक्टर्स तक पहुँच भी नहीं पाते हैं।
प्रोफ़ेशनल ऐक्टर बनना है तो आपको पहले से ही तैयारी करनी होगी। आजकल तो कई जगह सेट भी नहीं होते, सबकुछ क्रोमा के सामने शूट होता है। ऐसे में अनाड़ी ऐक्टर कैसे इस नई तकनीक के साथ तालमेल बैठा सकता है? ये सब ट्रेनिंग के दौरान सीखा जा सकता है।
जो भी जुनून से सीखेगा, अमल करेगा, वही ऐक्टर बनेगा।
इदरीस खत्री
अभिनय प्रशिक्षक
एक्टिंग मेंटर
